| 000 | 02971nam a2200481Ia 4500 | ||
|---|---|---|---|
| 100 | _aकाळे, श्री. वा. | ||
| 520 | _aचालवावें हाती धरूनिया | ||
| 942 | _cBK | ||
| 654 | _aगृहणीचा वेळ वाचवा | ||
| 654 | _a रफु करण्याची कला | ||
| 654 | _a पाळण्याच्या परिक्षेत रितीलाच महत्त्व | ||
| 654 | _a चढता आणि पडता काळ | ||
| 654 | _a पतीच्या उत्कर्षाची आघाडी | ||
| 654 | _a काटेरि कुंपणे भोवती नकोत ! | ||
| 654 | _a चालवावें हाती धरूनिया | ||
| 654 | _a शिखरापर्यत मोटर पोचत नाही | ||
| 654 | _a ब्-हाड घर की नंदनवन ? | ||
| 654 | _a नातलगांच्या बदलत्या भूमिका | ||
| 654 | _a फुकट मिळतें म्हणून विकले जाऊ नका | ||
| 654 | _a मित्राच्या घरचेंआगतस्वागत | ||
| 654 | _a गृहिणीच्या नोकरीचा प्रपंच | ||
| 654 | _a संभाषणाचा ओघ आटूं देऊ नका ! | ||
| 654 | _a नव्या राहणीतील पाहूणचार | ||
| 654 | _a करूंया सारथी विवेकाला | ||
| 654 | _a फुकाचें जीवन तरी पाजा ! | ||
| 654 | _a जीव तडफडण्यापर्यत कोंडमारा नको ! | ||
| 654 | _a कौशल्य सारे रचनेत आहे | ||
| 654 | _a गृह-प्रपंचांत सहविचाराचे महत्व | ||
| 654 | _a सुखाचा आभास - दु:खाला कारण | ||
| 654 | _a घरच्या गाड्यालाहि वंगण हवें ! | ||
| 654 | _a ङळुवार हाताने कुसळ काढा | ||
| 654 | _a घरोब्यांतील मित्रमंडळी | ||
| 654 | _a शोभेच्या स्वेटरचें रहस्य ! | ||
| 654 | _a सोन्याच्या दागिन्यांतील तांब्याचा प्रभाव | ||
| 654 | _a बेकारीचा दुखणेकरी ! | ||
| 654 | _a शिंके तुटलें आणि बोक्यांचे फावलें ! | ||
| 654 | _a आलेला डाव कसोशीने खेळायचा ! | ||
| 654 | _a | ||
| 245 | _aकौटुंबिक हितगुज | ||
| 260 |
_aपुणे _bकिर्लोस्कर प्रेस _c1961 |
||
| 082 | _aM177 | ||
| 300 |
_bHb _c18cm _a119 |
||
| 999 |
_c345111 _d345111 |
||
| 041 | _amar | ||