| 000 | 04087nam a2200517Ia 4500 | ||
|---|---|---|---|
| 100 | _aबिर्जे, वा. लिं. | ||
| 520 | _aधर्माची उत्क्रांति | ||
| 365 | _b2 | ||
| 942 | _cBK | ||
| 654 | _aक्षत्रियांची उत्पत्ति व समाजांतील त्याचें प्रथमस्थान | ||
| 654 | _a क्षत्रिय वैश्यांच्या अस्तित्वाबद्दल शास्त्रांची प्रमाणे | ||
| 654 | _a चालुक्य वंशांतील राजे | ||
| 654 | _a उत्तरकालीन चालुक्य राजे | ||
| 654 | _a शिलहार-शेलारवंशातील राजे | ||
| 654 | _a वर्णव्यवस्थेचा शेवट आणि जातीची सुरूवात | ||
| 654 | _a स्वकर्तव्यपराङ्मुखता | ||
| 654 | _a देवगिरी येथील यादव उर्फ जाधव | ||
| 654 | _a ब्राह्मणेतर सुशिक्षित बंधुस दोन शब्द | ||
| 654 | _a धर्माची उत्क्रांति | ||
| 654 | _a क्षत्रियांपासून ब्रह्मविद्येचा उदग्म व उपदेश | ||
| 654 | _a नेपालचे गुरखे | ||
| 654 | _a चांद्रसेनीय कायस्थप्रभूंचा त्रोटक इतिहास | ||
| 654 | _a कर्मविपाक अथवा जातींची मोडकी ढाल | ||
| 654 | _a जातीच्या शाश्वतीच्या कारणांत तिच्या अशाश्वतीचा पुरावा | ||
| 654 | _a मराठे व त्यांचे सामाजीक इतिहास | ||
| 654 | _a मराठे आणि रजपूत यामराठे हे आर्य आहेत | ||
| 654 | _a वेदाची रचना | ||
| 654 | _a वर्णभेदाची क्रमश:उत्पत्ति व जातीचा आरंभ | ||
| 654 | _a ऐतिहासीक दृष्टया क्षत्रियांचें अस्तित्व व त्याचें प्रमुख वर्ग | ||
| 654 | _a क्षत्रिय म्हणविणा-या आणखी कांही जाती | ||
| 654 | _a धर्मक्रांतीचा त्रोटक इतिहास | ||
| 654 | _a जातींच्या उत्पत्तीबद्दल व स्थैर्याबद्दल चुकीचीं विधाने | ||
| 654 | _a आमच्या ब्राह्मणबंधुस दोन शब्द | ||
| 654 | _a सात्विकवृत्तीचा वृथाभिमान आणि स्पर्शाचा अतिरेक | ||
| 654 | _a विजयनगरचे राजे व मराठे सरदार | ||
| 654 | _a पूर्वकालीन राजे व सांप्रतचे मराठे यांचा परस्परसंबंध | ||
| 654 | _a बौध्दकालापर्यत जाती नव्हत्या | ||
| 654 | _a परशरामाची कथा आणि नि क्षत्रिय पृथ्वी हेण्याची आवश्यकता | ||
| 654 | _a राष्ट्रकूटवंशीय राजे | ||
| 654 | _a राज्योपभोग व ऐश्वर्य यांचा ब्राह्मणांस तिटकारा | ||
| 654 | _a | ||
| 245 | _aक्षत्रिय आणि त्यांचें अस्तित्व | ||
| 260 |
_aमुंबई _c1903 |
||
| 082 | _aM301.440954 | ||
| 300 |
_bHb _c18 cm _a16, 10, 359, 16 |
||
| 999 |
_c391724 _d391724 |
||
| 041 | _amar | ||